गुरू कुम्हार शिष कुंभ है, गढि-गढि काढै खोट। अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।। (कबीर दास के दोहे)
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गुरू कुम्हार शिष कुंभ है, गढि-गढि काढै खोट।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।।
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1 year ago 00:02:18 1
गुरू कुम्हार शिष कुंभ है, गढि-गढि काढै खोट। अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।। (कबीर दास के दोहे)