Composed by Saint Narahari Sonar
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दुर्गे दुर्घट भारी तुजविण संसारी ।
अनाथनाथे अंबे करुणा विस्तारी ॥
वारी वारी जन्ममरणांते वारी ।
हारी पडलो आता संकट निवारी ॥ १ ॥
जय देवी जय देवी महिषासुरमथिनी ।
सुरवरईश्वर-वरदे तारक-संजीवनी ॥ ध्रु ॥
त्रिभुवनभुवनी पाहतां तुज ऎसी नाही ।
चारी श्रमले परंतु न बोलवे कांही ॥
साही विवाद करितां पडिले प्रवाही ।
ते तूं भक्तांलागी पावसी लवलाही ॥ २ ॥
प्रसन्नदने प्रसन्न होसी निजदासां ।
क्लेशांपासून सोडवी तोडी भवपाशा ॥
अंबे तुजवांचून कोण पुरविल आशा ।
नरहरी तल्लीन झाला पदपंकजलेशा ॥ ३ ॥
अर्थ : -
हे देवी दुर्गे, तुम्हारे बिना इस संसार में कुछ भी घटित होना कठिन हैं।
हे अनाथों की नाथ, हे अंबे, अपनी करुणा का विस्तार करो ।
बार-बार जन्म-मृत्यु के इस चक्र से मैं हार गया हूँ ।
कृपा करके संकट का निवारण करो ।
हे देवी, हे महिषासुरमर्दिनी, तुम्हारी जय हो ।
देवों को वर देनेवाली, तारणहार, संजीवनीप्रदायिनी तुम्हारी जय हो ।
त्रिभुवन में तुम्हारे जैसा कोई नहीं है ।
चारों वेद तुम्हारी स्तुति करके थक गए, उनके पास तुम्हारा गुणगान करने के लिए शब्द समाप्त हो गए । छह शास्त्र ढूँढकर कर भी तुम्हें जान न पाए,
फिर भी अपने भक्तों पर तुम तुरन्त कृपा करती हो ।
हे प्रसन्नवदने, भक्तों पर नित्य प्रसन्न रहना।
हमें क्लेश, यातनाओं से छुड़ाकर हमारे सांसारिक पाश तोड़ देना ।
हे अंबे, तुम्हारे बिना हमारी इच्छाएँ कौन पूर्ण करेगा ।
तुम्हारे चरण-कमलों की धूल में नरहरी तल्लीन हो गया ।
(धूलिकण के साथ एक हो गया)
Durge Durghata Bhārī Tujaviṇa Sansārī |
Anātha-Nāthe Ambe Karuṇā Vistārī ||
Vārī Vārī Janma-Maraṇānte Vārī |
Hārī Paḍalo Ātā Saṅkaṭa Nivārī ॥ 1 ॥
Jay Devī Jay Devī Mahiṣhāsuramathinī |
Suravara-Īshvara-Varade Tāraka Sañjīvanī Jay Devī Jay Devī ||
Tribhuvana Bhuvanī Pāhatā Tuja Aisī Nāhī |
Chār