जब मैं था तब हरि नहीं,अब हरि है मैं नाँहि। सब अँधियारा मिटि गया,जब दीपक देख्या माँहि॥(कबीर दास-दोहा)

संत कबीर दास के दोहे WEBSITE LINK : SUBSCRIBE MY CHANNEL@hindiacademy2024 जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाँहि। सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि॥ व्याख्यान :- कबीर ने उपर्युक्त दोहे में परम सत्ता ईश्वर से साक्षात्कार की बात बताया है। जब तक अहंकार था तब तक ईश्वर से परिचय नहीं हो सका। अहंकार या आत्मा के भेदत्व का अनुभव जब समाप्त हो गया तो ईश्वर का प्रत्यक्ष साक्षात्कार हो गया। ’मैं’ आत्मन का अलग अहसास खत्म हो जाने के बाद, एकमात्र सत्ता ब्रह्मा का अनुभव शेष रहता है। बूँद का अस्थित्व यदि समुद्र में विलिन हो गया तो बूँद भी समुद्र ही हो जाती है। शरीर के भीतर जब परम-ज्योति रूपी दीपक का प्रकाश हुआ तो अज्ञानान्धकार–जनित अहं स्वयं नष्ट हो गया। @CBSE @successcds @shrieducationofficial @Blippi
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